बागड़ी गोत्र मीणा माइक्रो हिस्ट्री

आदिवासी मीणा समुदाय में #बागड़ी भी एक प्राचीन गोत्र है | यह #टोंक और #जयपुर में प्रमुख रूप से पाया जाता है | #त्रिदेवी (गाँव-#तशावरा,जयपुर) कुलदेवी,काली माता अमरसर को भी मानते है और #बिल्व को कुल वृक्ष मानते है | #डोलाका बास एक प्रतिष्टित गाँव रहा | यहाँ के #रघुवीर सिंह मीणा जयपुर राजा #माधोसिंह के #अंगरक्षक रहे है | इस गोत्र का #आमेर,#चाकसू और #चौमु में इस गोत्र की #बहुलता है | अचरोल इस गोत्र का मुख्य #मेवासा रहा है |जयपुर की #बस्सी तहसील में भी #अपरेटा इस गोत्र का एक बड़ा गाँव ई | #अचरोल को #अचला बागड़ी ने और #चंदवाजी को #चंदाबागड़ी ने बसाया था और खोड़ा गोत्र के मीणा मेवासी और वीर पुरुष #बिलाजी खोड़ा की इनसे रिश्तेदारी थी || #मेवासा अचरोल के #अचला बागड़ी और #चंदवाजी के #चंदा बागड़ी की शादी बिलाजी खोड़ा की लडकियों से हुई थी | मीणा #जागा और #बुजर्गो के अनुसार अचरोल को #अचलाबागड़ी ने बसाया था जबकि कच्छवा इतिहास के अनुसार आमेर महाराजा #पृथ्वीसिंह कछावा के छोटे पुत्र #बलभद्रसिंह को यह क्षेत्र 1550 ई० में जागीर में मिला उनके पुत्र #अचलदास हुए उन्होंने अचरोल बसाया | अब तक की खोज और आप दुवारा दी गई...